निर्जला एकादशी व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और साल 2025 में यह 6 जून को है। इसे निर्जला इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन व्रती बिना जल ग्रहण किए पूरे दिन का व्रत रखते हैं। इसीलिए यह व्रत सबसे कठिन और पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है।
निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत का फल अत्यंत बड़ा होता है। यह व्रत जितना कठिन है, इसका फल उतना ही श्रेष्ठ भी होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी पाप धुल जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसके अलावा, यह व्रत भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। विष्णु भक्तों के लिए यह व्रत उनके प्रति समर्पण और भक्ति की सर्वोच्च परीक्षा की तरह है।
निर्जला एकादशी की रात्रि में किए जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य
1. मौन साधना और ध्यान
निर्जला एकादशी की रात्रि में मौन साधना का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में मौन रहकर आत्मिक विकास करना और प्रभु की कृपा प्राप्त करना माना गया है। इस दिन मौन रहने से मन को शांति मिलती है और ध्यान में लगने से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। व्रती यदि पूरी रात या अर्धरात्रि तक जागकर मौन साधना करता है, तो वह भगवान विष्णु की विशेष कृपा का पात्र बन जाता है। ध्यान से मन शांत होता है और व्यक्ति अपने भीतर छिपे सत्य और ज्ञान को समझ पाता है।
2. मंत्र जप और भजन-कीर्तन
अगर मौन साधना संभव न हो तो मंत्र जप या भजन-कीर्तन करने का भी बड़ा महत्व है। निर्जला एकादशी की रात में मंत्रों का जप करने से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यदि आपके साथ अन्य व्रती भी हों, तो उनके साथ भजन-कीर्तन करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह कार्य न केवल भक्ति भाव को बढ़ाता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
3. पितरों की शांति के लिए विशेष पूजा
निर्जला एकादशी पितरों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन सूर्यास्त के बाद घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाना चाहिए। इससे पितृ तृप्त होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना भी पितरों को प्रसन्न करता है। इसके साथ ही पितृ मंत्र ‘ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्’ का जप करने से पितृ कृपा प्राप्त होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
निर्जला एकादशी के दौरान अन्य महत्वपूर्ण बातें
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इस दिन खाने-पीने में विशेष संयम रखना चाहिए। व्रती को पूर्णतः जल त्याग करना होता है, इसलिए इसे करना शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होता है।
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व्रत के दौरान गंदी या नकारात्मक बातें न करें। मन और शब्द दोनों को पवित्र रखें।
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पूजा के दौरान साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें क्योंकि स्वच्छता भगवान को प्रिय होती है।
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रात्रि जागरण के समय शांत और एकांत स्थान पर बैठकर पूजा और ध्यान करें, जिससे आध्यात्मिक अनुभव और भी गहरा हो।
निर्जला एकादशी का पारण और व्रत खोलना
निर्जला एकादशी का व्रत पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है। व्रती सूर्योदय से पहले ही अपनी पूजा कर लेते हैं और द्वादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में व्रत खोलना शुभ माना जाता है। पारण करते समय हल्का भोजन या फलाहार करना चाहिए, जिससे शरीर को राहत मिल सके। पारण के बाद भी मन को पवित्र रखना और सत्संग या ध्यान में लगे रहना चाहिए।
निष्कर्ष
निर्जला एकादशी व्रत न केवल एक धार्मिक कर्म है बल्कि यह आत्मा की परीक्षा भी है। बिना जल लिए पूरा दिन व्रत रखना और रात्रि जागरण करना मानसिक और शारीरिक दोनों रूपों में तपस्या समान है। मौन साधना, मंत्र जप, भजन-कीर्तन और पितृ पूजा जैसे कार्य इस व्रत को और अधिक पुण्यवान बनाते हैं। यह व्रत भक्त को न केवल भगवान विष्णु की कृपा से नवाजता है, बल्कि परिवार में सुख, शांति और समृद्धि भी लाता है।
साल 2025 में 6 जून को जो भक्त निर्जला एकादशी का पालन करेंगे, उन्हें ईश्वर की विशेष कृपा अवश्य प्राप्त होगी। आप भी इस दिन व्रत और पूजा-पाठ के माध्यम से अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति का अनुभव कर सकते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत एक बार जीवन में अवश्य रखें और भगवान विष्णु की अनंत कृपा पाएं।