मुंबई, 21 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि एक शादीशुदा जोड़े में पति या पत्नी के लिए अलग रहना नामुमकिन है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति अलग रहना चाहता है तो उसे शादी ही नहीं करनी चाहिए। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि शादी का अर्थ है दो आत्माओं और दो लोगों का मिलन, ऐसे में पति-पत्नी का अलग रहना उचित नहीं हो सकता। दरअसल, मामला एक ऐसे दंपती से जुड़ा था, जिनके दो छोटे बच्चे हैं और दोनों अलग रह रहे हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुई महिला ने कहा कि उसका पति सिंगापुर में रहता है और फिलहाल भारत में मौजूद है, लेकिन वह मामला सुलझाने को तैयार नहीं है और सिर्फ बच्चों की कस्टडी चाहता है। इस पर अदालत ने महिला से पूछा कि वह सिंगापुर क्यों नहीं जा सकतीं, तो महिला ने पति के व्यवहार को कारण बताया। उसने कहा कि पति से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती और सिंगल मदर होने की वजह से उसे नौकरी की जरूरत है।
इस पर कोर्ट ने पति को पांच लाख रुपए जमा करने का निर्देश दिया। हालांकि महिला ने कहा कि वह किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती। जस्टिस नागरत्ना ने इस पर कहा कि शादी के बाद पत्नी यह नहीं कह सकती कि वह पति पर निर्भर नहीं रहना चाहती। भले ही आर्थिक रूप से न सही, लेकिन भावनात्मक रूप से तो पति-पत्नी एक-दूसरे पर निर्भर होते ही हैं। उन्होंने कहा कि शायद यह सोच पुरानी लग सकती है, लेकिन शादी के बाद स्वतंत्रता की ऐसी बात उचित नहीं है। पत्नी ने कोर्ट से समय मांगा और कहा कि वह सोचकर जवाब देगी। अदालत ने दोनों पक्षों से कहा कि आप पढ़े-लिखे लोग हैं, इसलिए विवादों को आपसी सहमति से सुलझाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट पहले भी तलाक और वैवाहिक विवादों में कई अहम टिप्पणियां कर चुका है। दिसंबर 2024 में कोर्ट ने कहा था कि शादी का रिश्ता आपसी भरोसे, साथ और साझा अनुभवों पर आधारित होता है। अगर लंबे समय तक यह नहीं होता तो विवाह केवल कागजों पर रह जाता है। उस मामले में 20 साल से अलग रह रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर दंपती को तलाक देते हुए पत्नी को 50 लाख रुपए एलीमनी और बेटी की पढ़ाई व भविष्य के खर्चों के लिए अतिरिक्त 50 लाख रुपए देने का आदेश दिया गया था।