फिल्म रिव्यु - Sirf Ek Banda Kafi Hai
ये कोर्टरूम ड्रामा बहुत दमदार है, मनोज बाजपेयी की एक्टिंग के लिए हर अवॉर्ड छोटा पड़ेगा
क्या होता है जब जिसे हम भगवान मानते हैं वही पाप कर दे...ये कहानी एक ऐसे ही बाबा की है जिसे लोग भगवान मानते हैं और उसने अपनी ही एक नाबालिग भक्त के साथ गलत किया. ये फिल्म उस नाबालिग लड़की को न्याय दिलाने वाले वकील की है और बहुत शानदार है. इस कोर्टरूम ड्रामा को सबको देखना चाहिए. ना सिर्फ इसकी कहानी के लिए...सच के लिए...बल्कि मनोज बाजपेयी की बहुत जबरदस्त एक्टिंग के लिए. फिल्म की शुरुआत में बता दिया गया कि ये पीसी सोलंकी की कहानी है. सोलंकी वो वकील हैं जिन्होंने एक नाबालिग लड़की से रेप को आरोप में आसाराम बापू को जेल भिजवाया था. फिल्म में भले किसी का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया. लेकिन वकील पीसी सोलंकी के नाम से साफ हो गया कि कहानी क्या है.
कहानी
ये कहानी शुरु होती है एक नाबालिग लड़की नू और उसके माता पिता के दिल्ली के कमाल नगर थाने जाने से. जहां वो एक बाबा के खिलाफ नाबालिक से शोषण का केस दर्ज करवाते हैं. इसके बाद पुलिस बाबा को गिरफ्तार करती है..बाबा के भक्त भड़क जाते हैं. वकील पैसे खाकर मामला रफा दफा करने की फिराक में है. ऐसे में लड़की के माता पिता सहारा लेते हैं पीसी सोलंकी का. जो इस केस में बड़े बड़े वकीलों की जिरह के फेल कर देते हैं. सबको पता है कहानी में आगे क्या होता है..लेकिन कैसे होता है. ये आपको जरूर देखना चाहिए.
एक्टिंग
मनोज बाजपेयी ने इस किरदार को जिस तरह से जिया है उसके लिए तारीफ और कोई भी अवॉर्ड कम है..जिस तरह उन्होंने राजस्थान लहजा पकड़ा और हर एक्स्पेशन डिलीवर किया, वो कमाल है. एक छोटा सा वकील जो स्कूटर पर कोर्ट जाता है. जो उन वकीलों के साथ एक फोटो लेना चाहता है जो उसके सामने इस केस को लड़ रहे है. जो नई शर्ट पहनता है तो टैग ही हटाना भूल जाता है. आखिर में मनोज एक मोनोलोग बोलते हैं और ये आपके रौंगटे खड़े कर देता है. इसे मनोज बाजपेयी का अब तक का सबसे बेस्ट नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनका कौनसा किरदार सबसे बेस्ट है ये तय करना बहुत मुश्किल है.लेकिन उन्होंने पीसी सोलंकी की इस कहानी को जीवंत कर दिया है. अदिति सिंह अंद्रिजा ने उस नाबालिग लड़की का किरदार निभाया है. औऱ उनका काम कमाल है. जहां उनका चेहरा ढका हुए है वहां वो अपनी आंखों से अपना दर्द बयां कर जाती हैं. विपिन शर्मा बचाव पक्ष के वकील के किरदार में जबरदस्त हैं. जब वो नू से उल्टे सवाल करते हैं तो आपको गुस्सा आता है और यही उनके किरदार की कामयाबी है. बाबा के किरदार में सूर्य़ मोहन कुलश्रेष्ठ का काम भी काफी अच्छा है..एक्टिंग डिपार्टमेंट में ये फिल्म अव्वल है.
कैसी है फिल्म
ये सिर्फ एक फिल्म नहीं एक्सपीरियंस है. इसे हिंदी सिनेमा का सबसे बेहतरीन कोर्टड्रामा कहा जा सकता है. एक आम वकील कैसे बड़े बड़ों की छुट्टी कर सकता है.अगर आप सच के साथ हैं तो आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. ये फिल्म इस बात को बहुत मजबूती से कहती है. ये फिल्म कहीं ढीली नहीं पड़ती. अपनी पेस से आगे बढ़ती है और आप उस लड़की को न्याय दिलाने की इस मुहिम में उसके साथ जुड़ जाते हैं. डायलॉग कमाल के हैं. जिरह के सीन बहुत इम्प्रेसिव हैं.
डायरेक्शन
अपूर्व सिंह कार्की का डायरेक्शन सटीक है..वो Aspirants और saas bahu achaar pvt ltd जैसी दमदार सीरीज बनाई हैं लेकिन ये शायद उनका बेस्ट है और बताता है कि वो एक कमाल के डायरेक्टर हैं. बहुत सिंपल तरीक से भी जबरदस्त कहानी कही जा सकती है. वो कहानी भी कही जा सकती है जिसके बारे में सब जानते हैं.
तारीफ इस फिल्म के प्रोड्यूसर विनोद भानुशाली की भी करनी चाहिए जो ऐसी कहानी को इस तरह से सामने लाने की हिम्मत कर पाए . क्योंकि अगर ऐसी कहानियों में पैसा लगाने की हिम्मत प्रोड्यूसर करेगा नहीं तो ये कहानियां बनेंगी नहीं और हम यही कहते रहेंगे कि कुछ अच्छा बनता क्यों नहीं है. इस फिल्म को जरूर देखा जाना चाहिए.
क्या हो सकता था बेहतर?
पीसी सोलंकी की पर्सनल लाइफ और उनका स्ट्रगल भी चर्चा का विषय बना था. अगर वो बात भी इस फिल्म के शामिल की जाती तो और मजा आता. ओटीटी की जगह ये फिल्म थिएटर में रिलीज की जानी चाहिए थी क्योंकि आज भी ओटीटी प्लेटफार्म भारत की टायर 3 और टायर 5 की ऑडियंस तक नहीं पहुंच पाया है, जहां गांव में भूत प्रेत को लेकर कई भयानक प्रथाओं का आधार लिया जाता है और बच्चों के शोषण के मामले भी सुनाई देते हैं, ऐसी जगह पर फिल्म के पहुंचने के लिए उसे थिएटर में रिलीज करना ज्यादा सही होता.
क्यों देखें?
कुछ फिल्में क्यों देखनी चाहिए इस सवाल के लिए नहीं बनी होती. फिल्म बंदा उन फिल्मों में से ही एक है. बेटी हो या बेटा हो अपने बच्चों के अधिकार के लिए POCSO जैसा एक्ट किस तरह से मदद करता है ये देखने के लिए, लगभग 5 साल चले इस संघर्ष में एक आम परिवार को न्याय दिलाने के लिए एक पावरफुल व्यक्ति से लड़ने की हिम्मत दिखाने वाले पीसी सोलंकी को देखने के लिए एक बेहतरीन कहानी के लिए सिर्फ एक बंदा काफी है, जरूर देखनी चाहिए.