ठोस कार्यवाही के अभाव में शैवालों से पटा, अति प्राचीन संकुलधारा पोखरा, निगम की अस्थायी कार्यवाहियों का नहीं हो रहा कोई असर।
वाराणसी। अपने सांस्कृतिक और धार्मिक प्रकृति के लिए काशी मशहूर है। जिले में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं जो देश-विदेश के विभिन्न पर्यटकों एवं दर्शनार्थियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वाराणसी के खोजवां इलाके में स्थित संकुलधारा पोखरा स्वयं में एक पौराणिक महत्व रखने वाला धार्मिक स्थल है, जहां सदियों से विभिन्न प्रकार के पूजन व मेलों का आयोजन किया जाता है। भारी संख्या में लोग इस पोखरे में स्नान करते आए हैं।
इसकी महत्ता को देखते हुए ही कुछ वर्षों पहले इस पोखरे का सुंदरीकरण किया गया। पर इसके रखरखाव में कितनी उदासीनता है, इस बात की साक्षी स्वयं इस पोखरे की वर्तमान स्थिति है। पूरा पोखरा शैवालों से पटा हुआ है। गंदगी और बदबू का आलम ऐसा है कि पोखरे के सुंदर किनारों पर बैठना तो दूर आसपास से गुजरना भी दुश्वार हो गया है। पौराणिक महत्व होने के कारण दर्शन पूजा एवं कर्मकांड करने वाले दर्शनार्थियों का जमावड़ा आए दिन इस पोखरे के परिसर में लगा रहता है। विडम्बना तो यह है कि जहां एक ओर इस पोखरे के पास भटकना भी दुश्वार है वहीं इसी गंदगी और बदबू के बीच दर्शनार्थियों को पूजा-पाठ आदि करना पड़ रहा है।
पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बरकरार रखने के लिए पोखरे में अत्याधुनिक फव्वारे लगाए गए थें, जो वर्तमान समय में पूरी तरह से ठप हो चुके हैं। इस समस्या से परेशान क्षेत्रीय निवासी आए दिन शिकायतें नगर निगम तक पहुंचाते हैं। दबाव ज्यादा बनने पर निगम द्वारा नाम मात्र की सफाई तो कर दी जाती है पर मूल समस्या का निस्तारण नहीं होता है।
गंगा में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगने के बाद आसपास के क्षेत्रों की मूर्तियां इसी पोखरे में विसर्जित की जाती हैं। मूर्तियों के अवशेष तो पोखरे से निकाल दिए जाते हैं पर मूर्तियों की मिट्टियां उनके केमिकल पानी में ही रह जाते हैं जो धीरे-धीरे पानी को दूषित करते जा रहे हैं।
निगम द्वारा किए जा रहे इन अस्थाई और क्षणिक कार्यवाहियों से पूरी तरह से प्रदूषित हो चुके पोखरे के पानी की इस समस्या का निस्तारण संभव नहीं है। देखने वाली बात अब यह है कि निगम के आला अधिकारी इस गंभीर समस्या को कब अपने संज्ञान में लेते हैं और इस पोखरे की समुचित सफाई कर इसे गंदगी व शैवालों से पूर्ण रुप से निजात दिलाते हैं।