बनारस न्यूज डेस्क: वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अगले सप्ताह से शवों को जलाने के लिए लकड़ी की जगह बायोमास ब्रिकेट्स का इस्तेमाल शुरू किया जाएगा। यह ब्रिकेट्स धान, सरसों और अरहर जैसी फसलों के अवशेषों से तैयार किए गए हैं, जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित विकल्प हैं। एक शव के दाह संस्कार में अब 200 से 360 किलो लकड़ी की जगह सिर्फ 180 से 200 किलो ब्रिकेट्स से काम चल जाएगा, जिससे तीन से पांच हजार रुपये की बचत होगी और लकड़ियों की कटाई पर भी रोक लगेगी।
पंजाब की एक कंपनी ने इन बायोमास ब्रिकेट्स को तैयार किया है और काशी के घाटों पर इसे कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) के तहत प्रायोगिक तौर पर लागू किया जा रहा है। कंपनी के एमडी लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) मोनीश आहूजा के मुताबिक, ये ब्रिकेट्स न सिर्फ सस्ता विकल्प हैं, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर हैं क्योंकि इससे कार्बन उत्सर्जन में 30-40 फीसदी तक की कमी आती है और कुल लागत में भी लगभग 40% की बचत होती है।
इससे पहले पुणे, औरंगाबाद, दिल्ली, गुरुग्राम, अहमदनगर और गुवाहाटी जैसे शहरों के कई श्मशान घाटों पर इन ब्रिकेट्स का सफल प्रयोग किया जा चुका है। महाराष्ट्र, पंजाब, गोवा और असम में भी इनका उपयोग किया जा रहा है। मणिकर्णिका घाट पर यह पहल ना सिर्फ अंतिम संस्कार को कम खर्चीला बनाएगी बल्कि किसानों के फसल अवशेषों का उपयोग कर उन्हें आर्थिक लाभ भी देगी और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक मजबूत कदम साबित होगी।