Film Review - लाहौर कॉन्फिडेंशियल
फिल्म में कुछ भी 'Confidential' नहीं, फीकी रही ऋचा चड्ढा की एक्टिंग
कहानी
पाकिस्तान अपने आंतकियों के जरिए हमेशा हिंदुस्तान में दहशतगर्दी फैलाता है. एक आंतकी को खत्म करो तो दूसरे संगठन लाइन में खड़े दिख जाते हैं. लाहौर कॉन्फिडेंशियल के जरिए अब दर्शकों को ये दिखाया जाएगा कि पाकिस्तान कैसे आंतकियों की फंडिंग करता है, कैसे हिंदुस्तान के खिलाफ साजिश रची जाती है. वहीं RAW और ISI के काम करने के तरीकों के बारे में भी बताया जाएगा. इस कहानी में रॉ की सीक्रेट एजेंट बनी हैं अनन्या (ऋचा चड्ढा) जिन्हें पाकिस्तान सिर्फ इसलिए भेजा जाता है जिससे वे वो सीक्रेट जानकारी बाहर निकाल सकें जिससे हिंदुस्तान में दहशतगर्दी पर रोक लगे.
कहानी आगे बढ़ती है और अनन्या हिंदुस्तान छोड़ पाकिस्तान पहुंच जाती है. वहां पर उसकी मुलाकात दूसरी इंडियन एजेंट युक्ति ( करिश्मा तन्ना) से होती है जो खुद कई सालों से भारत के लिए पाकिस्तान में रहकर काम कर रही है. मिशन ये है कि अनन्या को एजेंट रॉफ जाफरी (अरुणोदय सिंह) के बारे में पूरी जानकारी निकालनी है. अब वो इस मिशन के लिए रॉफ से अपनी नजदीकियां बढ़ाती है, उसके साथ शेरो-शायरी करती है और उसकी पूरी कुंडली निकालने की कोशिश में रहती है.
प्यार के आगे फर्ज रह जाएगा पीछे?
लेकिन लगातार रॉफ जाफरी के करीब रहने से अनन्या को उससे प्यार हो जाता है. प्यार भी इतना ज्यादा कि वो उसके के लिए कुछ भी करने को तैयार दिख जाती है. तो मतलब ये कहानी फर्ज और इश्क के भंवरजाल में फंसती दिखेगी. आगे की कहानी यही दिखाएगी कि अनन्या देशप्रेम दिखाते हुए अपने फर्ज का पालन करती है या फिर वो अपनी जिंदगी के इश्क को सबसे ऊपर रखती है.
इस कहानी में कुछ कॉन्फिडेंशियल नहीं
लाहौर कॉन्फिडेंशियल से पहले बॉलीवुड ने कई ऐसी फिल्में बनाई हैं जहां पर बेहतरीन सीक्रेट ऑपरेशन दिखाए गए हों. राजी से लेकर अक्षय की हॉलिडे तक, ये सभी फिल्में इसी थीम पर आगे बढ़ी हैं और दर्शकों का दिल भी जीता है. लेकिन कुणाल कोहली के निर्देशन में बनी लाहौर कॉन्फिडेंशियल के लिए ऐसा कहना भी बेमानी होगी. इस फिल्म में ना कोई थ्रिल है, ना ही दमदार कहानी. फिल्म के टाइटल में 'कॉन्फिडेंशियल' शब्द का इस्तेमाल जरूर हुआ है, लेकिन कहानी बिल्कुल भी कॉन्फिडेंशियल नहीं है. सबकुछ प्रिडिक्टेबल लाइन पर चलेगा और आपको क्लाइमेक्स आने से पहले ही पूरी कहानी पता होगी.
सभी कलाकारों ने किया निराश
इस फिल्म का एक्टिंग डिपार्टमेंट कमजोर और फीका कहा जाएगा. माना फिल्म के साथ ऋचा चड्ढा जैसी अभिनेत्री का नाम जुड़ा हुआ है, लेकिन फिर भी ये इंप्रेस करने के लिए काफी नहीं है. सीक्रेट एजेंट के रोल में ऋचा ने खराब किया, ये नहीं कहा जा सकता, लेकिन अच्छा किया, ये भी नहीं कह सकते. फिल्म में उनकी एक्टिंग औसत रह गई है. ऋचा के अपोजिट कास्ट किए गए अरुणोदय सिंह भी बेदम दिखाई पड़े हैं. कहने को वे पाकिस्तानी एजेंट बने थे, लेकिन उनकी अपील काफी फीकी रही, इंटेंसिटी मिसिंग दिखी. करिश्मा तन्ना ने भी निराश किया है. टीवी के बाद फिल्मों में जगह बनाने की कोशिश कर रहीं करिश्मा को अभी लंबा सफर तय करना पड़ेगा. कुणाल की बात करें तो उन्होंने डायरेक्शन के साथ-साथ एक्टिंग भी की है. रॉ ऑफिसर के रोल में उनका काम ठीक-ठाक रहा है.
वो गलती जिसे नजरअंदाज नहीं कर सकते
लाहौर कॉन्फिडेंशियल की कमजोर कड़ी ये भी रही है कि फिल्म में कई चीजें ऐसी दिखाई दीं जिन्हें देख आप भी सवाल उठा देंगे- क्या भारतीय एजेंट ऐसे होते हैं? क्या कोई भी एजेंट इतना कमजोर दिमाग का होता है कि वो किसी के प्यार में ऐसे फंस जाए कि उसका असल मिशन की कॉम्प्रोमाइज होता दिखे. अब अगर ये सवाल आपके मन में भी उठे, मतलब समझ जाइए कि मेकर्स की तरफ से कुछ तो गलत हो गया है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.