Prabhas की Adipurush सिनेमाघरों में लग चुकी है. थिएटर्स में पब्लिक के साथ एक सीट हनुमान जी के लिए भी छोड़ी गई है. अगर हनुमान जी गलती से भी ये फिल्म देखने चले आए, तो ओम राउत और मनोज मुंतशिर को बहुत कोसेंगे. फिल्म की कहानी तो सबको पता है. बचपन से हम रामायण और रामलीलाओं में राम द्वारा अन्याय पर न्याय की जीत वाली इस महान गाथा को देखते-सुनते और पढ़ते आए हैं। 'तानाजी' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके ओम राउत ने निसंदेह आज की जनरेशन के लिए इस महाकाव्य को भव्य स्केल पर बड़े पर्दे पर साकार किया है, मगर वो यह समझने में चूक गए की दशकों से हम जिस रामायण को देखने -सुनने के आदी हैं, उसकी एक बहुत ही मजबूत छवि हमारे दिलों में बसती हैं। ऐसे में उस छवि के साथ एक्सपेरिमेंट्स में सावधानी बरतना जरूरी है, और यही उनकी भूल है।
सच कहा जाये तो निर्देशक ओम राउत की फिल्म ‘आदिपुरुष’ राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रावण की कहानी नहीं है, ये कहानी उन्होंने राघव, जानकी, शेष, बजरंग और लंकेश की बुनी है। ये फिल्म देखते हुए दो ही बातें दिमाग में आती हैं. हे राम और जय श्रीराम, हे राम इसलिए कि राम के नाम पर ये क्या बना डाला और जय श्री राम इसलिए क्योंकि राम नाम के सहारे ही आप इस फिल्म को झेल पायेंगे.
कहानी
इस फिल्म की कहानी सबको पता है. श्रीराम की कहानी लेकिन यहां कहानी में कई चीजें बताई नहीं गई तो कई अधूरी छोड़ दी गई हैं और जिस तरह से ये कहानी बताई गई है वो आपको उस तरह से नहीं बांध पाती जैसा कि रामानंद सागर की रामायण का एक एपिसोड भी बांध लेता था.
कैसी है फिल्म
शुरुआत में फिल्म कुछ खास नहीं लगती. आप फिल्म से जुड़ते नहीं हैं लेकिन हनुमान जी की एंट्री के साथ फिल्म थोड़ी सी कनेक्ट करती है लेकिन कोई भी किरदार आपसे उस तरह से नहीं जुड़ पाता जैसी आप उम्मीद करते हैं और खराब वीएफएक्स फिल्म का मजा और खराब कर देते हैं. कुछ डायलॉग जिस तरह से
लिखें और बोलें गये हैं आप हैरान हो जायेंगे अगले कई सालों तक मनोज मुन्तशिर को अपने इन बचकाने डायलॉग के मिम्स देखने और सुनने को मिलते रहेंगे. फिल्म में आस्था वाला एंगल ही गायब कर दिया गया है. युद्ध के सीन ऐसे लग रहे हैं जैसे zombies लड़ रहे हों. यहां शायद हॉलीवुड टच देने की कोशिश की गई है लेकिन बॉलीवुड टच ही गायब हो गया है. आपको पूरी फिल्म में बस श्रीराम का नाम सुनना अच्छा लगता है और कुछ नहीं.
एक्टिंग
प्रभास श्रीराम जैसे नहीं लगे हैं, कृति सेनन अच्छी लगी हैं, लक्ष्मण के रोल में सनी सिंह ठीक हैं. रावण के रोल में सैफ कुछ खास इम्प्रेस नहीं करते. जिस तरह से रणवीर सिंह ने खिलजी का किरदार निभाया था. वैसी उम्मीद सैफ से थी लेकिन उन्होंने निराश किया. हुनमान जी के रोल में देवदत्त नागे ने अच्छा काम किया है.
म्यूजिक
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है. अजय अतुल ने इस डिपार्टमेंट में अच्छा काम किया है बीच बीच में जो चौपाइयां आती हैं वही आपको फिल्म झेलने की ताकत देती हैं. लेकिन बीच में श्रीराम और सीताजी पर फिल्माया गया एक गाना बचकाना लगता है.
क्यों देखें
'आदिपुरुष' को नए जमाने की रामायण के तौर पर पेश करने की कोशिश की गई थी. मगर वो चीज़ बिल्कुल ही उस दिशा में नहीं जा पाई. कुल जमा बात ये है कि ‘आदिपुरुष’ में देखने लायक कुछ नहीं है. अगर आप बच्चों को रामायाण के बारे में बताना चाहते हैं तो ये फिल्म दिखा सकते हैं..क्योंकि बच्चे आजकल के रील्स के जमाने में पूरे सीरियल्स तो देखेंगे नहीं लेकिन इस फिल्म को दिखाने के साथ आपको उनको पूरी जानकारी भी देनी होगी