1990 के दशक के अंतिम वर्षों में जब बॉलीवुड में दिलवाले और राजा हिंदुस्तानी जैसी रोमांटिक फिल्मों का बोलबाला था, उसी दौर में एन. चंद्रा कीशिकारी ने चुपचाप आकर दर्शकों को चौंका दिया। दशहरे पर रिलीज़ हुई यह क्राइम थ्रिलर ना तो टिपिकल मसाला थी और ना ही हंसने-गुदगुदानेवाला पारिवारिक ड्रामा। यह एक अलग ही ज़मीन की फिल्म थी — और इस ज़मीन को गोविंदा ने पूरी ताक़त से जोत डाला।
गोविंदा, जिन्हें उस दौर में कॉमेडी का राजा माना जाता था, उन्होंने शिकारी में अपने करियर का पहला एंटी-हीरो किरदार निभाकर सबको हैरान करदिया। उनकी कातिल मुस्कान के पीछे इस बार छल, रहस्य और बदले की आग थी। प्रोस्थेटिक मेकअप में ढले उनके इस किरदार ने साबित किया किगोविंदा सिर्फ हँसा ही नहीं सकते, बल्कि डरा भी सकते हैं। यह वह गोविंदा थे जिन्हें दर्शकों ने पहले कभी नहीं देखा था — और शायद इसीलिएफिल्म धीरे-धीरे कल्ट बनती चली गई।
तब्बू और करिश्मा कपूर जैसे सशक्त कलाकारों ने भी अपने-अपने दायरे तोड़े। करिश्मा, जिन्हें आमतौर पर नाचती-गाती, ग्लैमरस भूमिकाओं में देखाजाता था, उन्होंने यहां एक ऐक्शन-प्रधान किरदार निभाकर अपनी रेंज का नया पहलू दिखाया। वहीं तब्बू हमेशा की तरह अपने संतुलित अभिनय से कहानी को मजबूती देती हैं। इन तीनों की जोड़ी 1996 की हिट साजन चले ससुराल के बाद फिर से बनी, लेकिन इस बार मिज़ाज बिल्कुल बदलाहुआ था — रोमांच और रहस्य से भरा।
इस फिल्म के बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं थी। अरबाज़ ख़ान मूल रूप से लीड रोल में साइन किए गए थे और गोविंदा को विलेन के रूप मेंलिया गया था। लेकिन हेलो ब्रदर की शूटिंग टकराने के कारण अरबाज़ बाहर हो गए और एन. चंद्रा को पूरी स्क्रिप्ट और किरदारों का ढांचा बदलना पड़ा। आदित्य पंचोलीऔर जैकी श्रॉफ ने भी एक अहम रोल ठुकरा दिया, जो बाद में नर्मल पांडे के हिस्से आया। करिश्मा की भूमिका के लिए मनीषा कोइराला को भीगंभीरता से विचार किया गया था।
हालांकि रिलीज़ के वक्त 'शिकारी' को सिर्फ औसत प्रतिक्रिया मिली, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, दर्शकों और समीक्षकों ने फिल्म के मिज़ाज, इसकेजोखिम और गोविंदा के लीक से हटकर प्रदर्शन को सराहा। शिकारी उन फिल्मों में से एक बन गई जो बॉक्स ऑफिस पर नहीं, बल्कि समय कीकसौटी पर खरी उतरी।