भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा और महत्त्वपूर्ण प्रयास है कावेरी इंजन। यह एक स्वदेशी टर्बोफैन जेट इंजन है, जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की गैस टर्बाइन अनुसंधान प्रतिष्ठान (GTRE) ने विकसित किया है। इसका नाम दक्षिण भारत की पवित्र नदी कावेरी के नाम पर रखा गया है। कावेरी इंजन का मूल उद्देश्य था कि भारत को विदेशी जेट इंजनों पर निर्भरता से मुक्त किया जाए और देश के स्वदेशी लड़ाकू विमानों, विशेष रूप से हल्का लड़ाकू विमान (LCA) तेजस, के लिए एक भरोसेमंद शक्ति स्रोत तैयार किया जाए।
कावेरी इंजन की विकास यात्रा
इस इंजन की कहानी 1980 के दशक में शुरू हुई थी, जब भारत ने आत्मनिर्भर रक्षा तकनीक की दिशा में कदम बढ़ाया। 1989 में GTRE को कावेरी इंजन परियोजना (Kaveri Engine Development Project - KEDP) की जिम्मेदारी सौंपी गई। लक्ष्य था कि तेजस के लिए 81 kN थ्रस्ट देने वाला एक टर्बोफैन इंजन तैयार किया जाए।
हालाँकि, तकनीकी सीमाओं और परीक्षण असफलताओं के कारण परियोजना कई वर्षों तक अटकी रही। इसके बावजूद 2016 में DRDO ने इस पर फिर से काम शुरू किया। अब यह इंजन रूस में ट्रायल के दौर में है, जहाँ इसके कई वेरिएंट्स ने टेस्ट पास किए हैं।
रूस में चल रहा परीक्षण
रक्षा अधिकारियों के मुताबिक, कावेरी इंजन का रूस में परीक्षण जारी है, जहाँ इसका करीब 25 घंटे का परीक्षण और किया जाना है। DRDO की योजना है कि इस इंजन का इस्तेमाल भारत में विकसित हो रहे अनमैन्ड कॉम्बैट एरियल व्हीकल (UCAV) को शक्ति देने में किया जाएगा। इसका अर्थ है कि कावेरी इंजन केवल लड़ाकू विमानों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ड्रोन, कार्गो एयरक्राफ्ट और भविष्य के एयर डिफेंस प्लेटफॉर्म्स में भी उपयोगी सिद्ध होगा।
सोशल मीडिया पर कावेरी का क्रेज
हाल के दिनों में कावेरी इंजन फिर से चर्चा में आया है। सोशल मीडिया पर लोग सरकार से इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए फंड और संसाधन मुहैया कराने की मांग कर रहे हैं। तेजस मार्क-1A जैसे विमानों को फिलहाल अमेरिकी GE-404 इंजन से शक्ति मिल रही है, लेकिन अमेरिकी सप्लाई में देरी के कारण भारत को अपने इंजन विकल्पों की ओर देखना पड़ रहा है।
कावेरी इंजन की खासियतें
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थ्रस्ट क्षमता: वर्तमान में 73 kN थ्रस्ट देता है, लक्ष्य 78 kN है।
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वजन: लगभग 1180 किलोग्राम।
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टर्बोफैन डिजाइन: उच्च गति और कम ईंधन खपत के लिए उपयुक्त।
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विविध उपयोग: तेजस, ड्रोन्स, कार्गो प्लेन्स और सिविल एविएशन के लिए फिट।
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स्ट्रक्चर: हाई-प्रेशर कंप्रेसर, कम्बस्टर और टरबाइन से युक्त।
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तकनीकी सहयोग: फ्रांस की कंपनी Safran (पूर्व में Snecma) ने M88 कोर पर सहयोग किया है, जिससे 88.9–99 kN थ्रस्ट प्राप्त किया जा सकता है।
निष्कर्ष
कावेरी इंजन भारत के तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास है। भले ही इसमें समय और चुनौतियाँ आईं हों, लेकिन अब यह अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा है। यदि DRDO इसे पूरी तरह से कार्यात्मक बना लेता है, तो भारत दुनिया के चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जो अपने खुद के लड़ाकू विमान और उनके इंजन बनाते हैं।