बनारस न्यूज डेस्क: काशी की सुरधारा आज मौन हो गई है। पद्मविभूषण (2020) से अलंकृत और विश्वविख्यात शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनके निधन से न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत, बल्कि संपूर्ण काशी और विशेषकर संकटमोचन की संगीत परंपरा शोक की गहरी छाया में डूब गई है। ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और होरी को जिस सहजता और भावपूर्णता से उन्होंने गाया, वह उन्हें शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अलग पहचान देता है। उनके स्वर में गंगा-घाटों की मिठास, बनारसी बोली की आत्मीयता और लोक-संस्कारों की गहराई झलकती थी।
पंडित छन्नूलाल संकटमोचन मंदिर और उसकी संगीत परंपराओं से जीवनभर जुड़े रहे। वे संकटमोचन संगीत समारोह के वर्षों तक मुख्य आकर्षण रहे। महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र से उनके गहरे गुरु-शिष्य संबंध ने उनकी कला को और ऊँचाइयों तक पहुँचाया। पंडित जी केवल कलाकार नहीं थे, बल्कि लोक और भक्ति को जोड़ने वाले सेतु भी थे। उन्होंने तुलसीकृत रामचरितमानस को अपने स्वरों में प्रस्तुत कर लोगों के हृदय में गहराई से जगह बनाई।
संगीत प्रेमियों और कलाकारों ने उनके निधन पर गहरी शोक संवेदनाएँ व्यक्त की हैं। पंडित बिरजू महाराज की शिष्या संगीता सिन्हा, कथक नृत्यांगना सरला नारायण सिंह और यश भारती से सम्मानित बिरहा गायक विष्णु यादव ने उनके व्यक्तित्व और संगीत में छुपी महानता की सराहना की। उनके गायन में एक अद्वितीय कसक थी, जिसने दर्शकों और श्रोताओं को हमेशा आकर्षित किया। पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत की गौरव गाथा को स्थापित किया।
उनके जाने से काशी और संगीत जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। उनके स्वर, ठुमरी, कजरी और भक्ति रस से भरे गाए हुए मानस सदैव लोगों के हृदय में गूंजते रहेंगे। पंडित छन्नूलाल मिश्रा का योगदान भारतीय संगीत और संस्कृति के लिए अमूल्य है, और उनकी स्मृति आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।