ज्ञानवापी मस्जिद है इसलिए मामला कोर्ट पहुंचा है। अगर मस्जिद ना होती तो केस कोर्ट में नहीं जाता। अभी भी वहां पांच वक्त की नमाज पढ़ी जा रही है। जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता वह ज्ञानवापी मस्जिद है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उच्च न्यायालय से बड़े नहीं हैं। पूरा निर्णय उच्च न्यायालय पर छोड़ देना चाहिए। निर्णय न आने तक वह ज्ञानवापी मस्जिद है। यह बातें समाजवादी पार्टी (सपा) के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने मुख्यमंत्री योगी के ज्ञानवापी मामले में दिए बयान पर पलटवार करते हुए कही।
उन्होंने पत्रकार वार्ता कर कहा कि नौजवानों को रोजगार नहीं मिल रहे हैं, मंहगाई से लोगों की कमर टूट गई है। जीएसटी का दुरूपयोग व्यापारियों का धनादोहन कर किया जा रहा है। जीएसटी के मामले ईडी को सौंपकर उनकी कमर तोड़ने काम कर रही है। आजादी के बाद भाजपा पहली ऐसी सरकार है जो राष्ट्रीयकृत संस्थानों को बेचने का काम किया है। इसलिए हम जब चुनाव में जनता के बीच जाएंगे तब भाजपा सरकार के एक—एक काम को उजागर करेंगे।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने बड़ा हमला करते हुए कहा कि अगर ऐसा है तो बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर का सर्वे होना चाहिए। राष्ट्रपति को भी मंदिर जाने से रोका गया। आदिवासी, दलित और पिछड़ों का अपमान हुआ। धर्म के ठेकेदारों को ये अपमान नहीं दिखता। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल और गोमूत्र से धोया गया। एक वर्ग के लिए हिंदू धर्म बनाया गया है। यह आदिवासी, दलितों का धर्म होता तो अपमान नहीं होता। शायद मंदिर में जाने से राष्ट्रपति को न रोकते।
सपा महासचिव ने कहा कि भारत की पहचान बौद्ध दर्शन से और बुद्ध से है। अगर हिंदू-बौद्ध एक हैं तो बौद्ध धर्मस्थल क्यों तोड़े। बौद्ध धर्म स्थलों को तोड़कर मंदिर क्यों बनाया गया। हिंदू और बौद्ध एक होते तो बौद्ध मठ नहीं तोड़े जाते। ज्ञानवापी मामले में जब तक न्यायालय में मामला विचाराधीन है तब तक किसी भी नेता, उच्च पद पर आसीन व्यक्ति को किसी भी प्रकार का बयान देना नहीं चाहिए।