बनारस न्यूज डेस्क: रंगों के त्योहार होली से पहले बनारस में सदियों पुरानी मसान होली की परंपरा निभाई गई। इस साल मसान होली का आयोजन 10 मार्च को बाबा किनाराम आश्रम से शुरू होकर हरिश्चंद्र घाट और 11 मार्च को महाश्मशान नाथ मंदिर से मणिकर्णिका घाट पर किया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट पर हर साल चिता की राख से मसान होली खेली जाती है, जिसे 'भस्म की होली' के नाम से भी जाना जाता है। इस अनोखी परंपरा में नागा साधुओं के साथ आम लोग भी शामिल होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान स्वयं महादेव अघोरियों के साथ होली खेलने आते हैं। इस वर्ष भी देश-विदेश से श्रद्धालु इस अद्भुत परंपरा का हिस्सा बनने के लिए बनारस पहुंचे थे।
मसान होली की शुरुआत इस बार हरिश्चंद्र घाट से हुई, जहां नागा साधुओं ने राख और भस्म से एक-दूसरे को रंगा। मसान होली का आयोजन भव्य आरती के साथ शुरू हुआ, जिसमें डमरू और ढोल-नगाड़ों की गूंज ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। भक्तों ने शिवलिंग पर राख चढ़ाई और महादेव के जयकारों के बीच साधुओं ने होली खेली। कहा जाता है कि मसान की होली से आत्मा का शुद्धिकरण होता है और मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। यहां साधु-संतों को भांग के नशे में डूबे, बाघ की खाल ओढ़े और मुंडमाला पहने देखा गया, जो राख के रंग से होली खेलते नजर आए।
काशी में मसान की होली के बाद पूरे बनारस में पारंपरिक होली का उत्सव शुरू हो जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल होली का त्योहार 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से शुरू होकर 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे तक मनाया जाएगा। मसान की होली के बाद बनारस के घाटों पर रंगों और फूलों की होली का नजारा देखने लायक होता है। गंगा घाटों पर श्रद्धालु आपसी प्रेम और सौहार्द के रंगों में रंगे नजर आते हैं। मसान की होली बनारस की एक ऐसी परंपरा है, जो जीवन और मृत्यु के गहरे अर्थों को समझने का संदेश देती है।