22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, जिसने कई परिवारों को एक ही झटके में उजाड़ दिया। यह हमला कश्मीर में पहले से चली आ रही अशांति को और बढ़ा दिया। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में जो धीरे-धीरे शांति की स्थितियाँ बन रही थीं, अब इस हमले के बाद फिर से तात्कालिक रूप से संकट में आ गई हैं। इस हमले पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे ने अपने विचार साझा किए और इस घटना को एक बड़ी साजिश का हिस्सा करार दिया।
शांति की नींव को हिलाकर रख दिया
डीपी पांडे ने हमले पर बात करते हुए कहा, "कश्मीर एक ऐसा क्षेत्र है, जहां दशकों से अशांति और हिंसा का सामना करना पड़ा है। जब हालात सुधरने लगे थे, तो कुछ शक्तियां ऐसी हैं जो शांति नहीं चाहतीं। ये शक्तियां चाहती हैं कि शांति स्थायी न हो, और हर बार कुछ न कुछ ऐसा किया जाए जिससे कश्मीर में अशांति फैल सके।" उनका यह बयान आतंकवाद और इसके पीछे की साजिशों को और अधिक गंभीरता से समझाने का एक प्रयास था।
उन्होंने कहा कि इस हमले का उद्देश्य सिर्फ डर पैदा करना नहीं था, बल्कि यह शांति की नींव को हिला कर फिर से अशांति का माहौल बनाना था। उनका मानना था कि "यह हमला एक संदेश है, जो न केवल डराता है, बल्कि शांति के हर प्रयास को तोड़ने की कोशिश करता है।"
सरकार की चुप्पी और आलोचना
डीपी पांडे ने अपनी बातों में सरकार पर भी तीखा कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, "5-6 महीने बाद, कोई इस पर बोलने आएगा कि 'लोगों को मार दिया और सरकार कुछ नहीं कर पाई।'" उनका यह बयान सरकार की सुरक्षा और कार्रवाई में ढील पर सवाल उठाता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग सैन्य कार्रवाई को राजनीतिक लाभ के तौर पर देख रहे हैं, जो इस गंभीर मुद्दे को हल करने में मदद नहीं करता।
उन्होंने सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि, "क्या हम शांति को स्थायी बनाना चाहते हैं, या इसे केवल प्रचार का औजार बना रहे हैं?" उनका इशारा इस बात की ओर था कि शांति का रास्ता सिर्फ सैन्य कार्रवाई से नहीं, बल्कि स्थायी समाधान से निकाला जा सकता है।
कश्मीर पर खर्च और अन्य राज्यों से तुलना
कश्मीर के विकास पर बात करते हुए डीपी पांडे ने कहा, "सरकार ने कश्मीर के विकास के लिए बहुत खर्च किया है। वहां के लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दी गई हैं।" उन्होंने यह भी कहा, "अगर इतना पैसा बिहार में लगाया जाता, तो आज वह राज्य कहां से कहां पहुंच गया होता।" उनका यह बयान कश्मीर के विकास के प्रयासों के बावजूद असुरक्षा और आतंकवाद की स्थिति पर भी रोशनी डालता है।
समाधान का रास्ता: आक्रोश से समझदारी तक
जब उनसे पूछा गया कि क्या अब पाकिस्तान पर हमला करना चाहिए या फिर सर्जिकल स्ट्राइक करनी चाहिए, तो उनका उत्तर था, "ऐसी बातें सिर्फ आक्रोश को दर्शाती हैं, न कि किसी ठोस समाधान को।" उनका मानना था कि हथियारों से समाधान निकालने की मानसिकता सही नहीं है, क्योंकि इतिहास ने यह साबित किया है कि बातचीत और समझदारी से भी समाधान निकल सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि "शांति कोई कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है।" उनका यह विचार था कि शांति तभी स्थायी होगी जब लोगों का भरोसा मजबूत किया जाए, न कि उन्हें धमकाकर चुप किया जाए।
निष्कर्ष
कश्मीर में बढ़ते आतंकवादी हमलों और शांति की कोशिशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे का बयान बेहद महत्वपूर्ण है। उनका यह कहना कि हथियारों की बजाय समझदारी और बातचीत से हल निकाला जा सकता है, एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। शांति की स्थिरता केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं, बल्कि लोगों के बीच भरोसा और समझदारी से आती है, जो कश्मीर के जैसे संवेदनशील क्षेत्र में और भी महत्वपूर्ण है।