वाराणसी। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने दशहरा के दिन ही लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए दशहरे के मौके पर देशभर में लोग 'बुराई पर अच्छाई की जीत' के प्रतीक रूप में 'रावण दहन' करते हैं। रावण के पुतले के साथ अपनी बुराइयों को जलाते हैं और उससे होने वाले प्रकाश के रूप में अपने जीवन में अच्छाई को उतारते हैं। इसी क्रम में सोमवार को गंगा-वरुणा संगम किनारे लंका मैदान में दशानन का पुतला जलाया गया। भगवान राम के चलाए गए तीर से रावण का पुतला धू-धू कर जल उठा। तुलसी के दौर से चली आ रही आदि लाटभैरव रामलीला समिति की ओर से रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। रावण वध को देखने गंगा-वरुणा संगम किनारे हजारों लोगों की भीड़ जमा थी। रावण के पुतले की ऊंचाई 50 फीट, मेघनाद के पुतले की ऊंचाई 45 और कुंभकर्ण के पुतले ऊंचाई 40 फीट बनाया था। रावण का पुतला जलाने के अलावा कार्यक्रम में फायर शो का भी आयोजन किया गया था।
लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण हनुमान समेत वानर सेना के साथ 14 वर्ष के बाद पुष्पक विमान से अयोध्या के लिए निकल पड़े। भगवान राम वन के लिए जा रहे थे, तो जिन ऋषि-मुनियों से मिले थे वापस आते समय उन्हीं ऋषि-मुनियों से लंका विजय करने के बाद मिलते हुए अयोध्या के लिए आगे बढ़ रहे थे। श्री राम भारद्वाज, अगस्त ऋषि समेत कई ऋषि-मुनियों से आशीर्वाद लिया। इतना ही नहीं, वो चित्रकूट अपने सखा निषादराज से भी मुलाकात की।
लाटभैरव रामलीला समिति के प्रधानमंत्री व वरिष्ठ अधिवक्ता कन्हैयालाल यादव ने कहा कि आयोजन का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के साथ लोगों के सामने देश की समृद्ध संस्कृति और परंपरा को पेश करना था। कार्यक्रम का संयोजन व्यास दयाशंकर त्रिपाठी, केवल कुशवाहा, श्याम सुंदर सिंह, विकास यादव आदि ने किया। इस मौके पर सारनाथ थाना प्रभारी बृजेश सिंह, सरायमोहाना चौकी प्रभारी अजय यादव पुलिस बल के साथ डटे रहे।