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लाखों निसंतान दंपतियों ने संतान की चाह में लोलार्क कुंड में लगे डुबकी

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Posted On:Thursday, September 21, 2023

वाराणसी । धर्म नगरी काशी में लोलार्क छठ पर्व पर गुरुवार को लाखों नि:संतान दंपतियों ने संतान की चाह में कड़ी सुरक्षा के बीच भदैनी स्थित प्राचीन संकरे लोलार्क कुण्ड में एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आस्था की डुबकी लगाई। कुंड में डुबकी लगाने के बाद आस्थावानों ने अपने गीले वस्त्र और आभूषण कुंड में ही परम्परानुसार छोड़ दिए। इसके बाद नुकीली सुईयों से बिंधे हुए फल भगवान सूर्य को चढ़ा सन्तान प्राप्ति के लिए उनसे गुहार लगाई।

पर्व की पूर्व संध्या पर बुधवार अपरान्ह से ही कुण्ड में स्नान के लिए हजारों दम्पति लगभग दो किलोमीटर लम्बी लाइन में खड़े होकर स्नान के लिए अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे। उमस और गर्मी के बीच आस्था इस कदर हिलोरे मार रही थी कि कतार सोनारपुरा तक पहुंच गई। स्नान पर्व पर फल, फूल, पूजन सामग्री, भतुआ, श्रीफल, कदंब के फल साथ ही बनावटी पायल, बिछिया, नाक की कील और नथुनी जैसे जेवरों की सजी अस्थायी दुकानों पर श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रही। मेला क्षेत्र से जुड़ने वाली सड़कों पर जिला प्रशासन ने यातायात प्रतिबंधित किया है।

लोलार्क षष्ठी पर रविन्द्रपुरी स्थित अघोराचार्य बाबा कीनाराम की तप स्थली क्रीं कुण्ड में भी निसंतान दम्पतियों ने सन्तान प्राप्ति के लिए डुबकी लगाई। यहां मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखण्ड से भी श्रद्धालु स्नान के लिए एक दिन पहले ही आ गये थे। बिहार सासाराम, चैनपुर, हाटा, चांद भभुआ की रंजना, आभा सिंह, माया, प्रभावती उपाध्याय, नीलू सिंह, कंचन जायसवाल परिजनों के साथ क्रीं कुंड में आस्था की डुबकी लगा कर प्रफुल्लित दिखी। आभा सिंह ने बताया कि बाबा कीनाराम की कृपा से पुत्र की प्राप्ति होने पर यहा स्नान के लिए आई। पिछले 06 सालों से हर वर्ष लोलार्क छठ पर क्रीं कुंड में स्नान के लिए पूरे आस्था से आती हैं। स्नान के बाद दर्शन पूजन कर घर लौटती हैं।

काशी में मान्यता है कि लोलार्क कुण्ड में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर सूर्य की पहली किरण के साथ स्नान करने से सभी मनोकामना पूरी होती है। मान्यता है कि देवासुर संग्राम के समय भगवान सूर्य के रथ का पहिया इसी स्थान पर गिरा था। इससे ही कुंड का निर्माण हुआ था। इसी स्थान पर लोलार्क नाम के असुर का भगवान सूर्य ने वध किया था। यह भी मान्यता है कि महाभारत काल में कुंती को सूर्य उपासना से ही दानवीर कर्ण जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई थी। लोलार्क कुंड में व्रत, अनुष्ठान, स्नान-दान, फलों का बलिदान और लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन से भगवान सूर्य की कृपा से गोद अवश्य भर जाती है।

स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेख है कि माता पार्वती ने स्वयं इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में शिवलिंग की पूजा की थी। एक अन्य कथा है कि विद्युन्माली दैत्य शिव का भक्त था। भगवान सूर्य ने इस राक्षस को परास्त किया। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव हाथ में त्रिशूल लेकर सूर्य की ओर दौड़े। दौड़ते समय भगवान सूर्य इसी स्थान पर पृथ्वी पर गिरे। इससे इस स्थान का नाम लोलार्क पड़ा। इस कुण्ड का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्या बाई होलकर, अमृत राव और कूंच बिहार स्टेट के महाराज ने करवाया था। लोलार्क कुंड का वर्णन गहरवाल के ताम्रपत्रों, महाभारत, स्कंदपुराण के काशी खंड में, शिव रहस्य, सूर्य पुराण और काशी दर्शन में विस्तार से किया गया है। उधर, लोलार्क षष्ठी पर्व में उमड़ने वाली भीड़ को लेकर कमिश्नरेट पुलिस सर्तक है।


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