वाराणसी। वाराणसी और चंदौली को जोड़ने वाले मालवीय पुल पर आए दिन जाम की समस्या बनी रहती है। जिससे लोगों को दो-चार होना पड़ता है। इस पुल का इतिहास अपने आप में अद्भुत है। भले ही आज यह पुल कमजोर हो गया हो, लेकिन कभी भारतीय उपमहाद्वीप का पहला पुल हुआ करता था। गुरुपूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को लोगों को जाम से दो-चार होना पड़ा। 2.5 किमी का सफर तय करने के लिए लोग घंटों जाम में फंसे रहे। लोगों ने प्रशासन को कोसना शुरू कर दिया। वहीँ कुछ लोग जाम को देखते हुए वापस अपने घर की चले गये, तो कुछ ऐसे भी थे, जिन्हें सात वर्ष पहले 2016 में हुआ काण्ड याद आ गया। जिसमें मालवीय पुल पर भगदड़ होने के कारण 24 लोगों की मौत हुई थी, वहीँ 50 से अधिक लोग घायल हुए थे। मालवीय पुल पर हुई इस घटना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने संज्ञान में लिया था और मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। बावजूद इसके अभी तक यह पुल उपेक्षाओं का शिकार हुआ है।
समय बीतने के साथ यह पुल भी अपनी उम्र पार कर रहा है। वाराणसी और चंदौली पर स्थित इस पुल का 1 अक्टूबर सन् 1887 में उद्घाटन किया गया था। तब इसे ‘डफरिन ब्रिज’ के नाम से जाना जाता था। आजादी मिलने के बाद सन् 1948 में मदन मोहन मालवीय जी के नाम पर इस पुल का नाम ‘मालवीय पुल’ कर दिया गया। वर्तमान में लोग इसे राजघाट पुल के नाम से भी जानते हैं। यह पुल पं० दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन और काशी रेलवे स्टेशन के बीच में है।
उद्घाटन के समय यह पुल केवल रेलवे के आवागमन के लिए था। बाद में इसे पैदल और वाहनों के लिए खोला गया। काशी के पुरनिये बताते हैं कि इस पुल को अवध और रूहेलखंड के इंजीनियरों ने मिलकर बनाया था। तत्कालीन महाराज श्रीप्रसाद नारायण सिंह की उपस्थिति में इस पुल का उद्घाटन होते समय एक नई इबादत लिखी गई। बीते दो दशक की बात की जाय, तो इस पुल की कई बार मरम्मत हुई। आवागमन अवरुद्ध हुआ। लेकिन मुकम्मल मुकाम हासिल नहीं हो सका। कई बार इसके नट बोल्ट ढीले हो जाते हैं। वक़्त के थपेड़ों को झेलता हुआ यह पुल अब जर्जर हो रहा है। कहने को तो यह ऐतिहासिक धरोहर है, लेकिन ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा जैसे करनी चाहिए, वैसे इसकी रक्षा नहीं हो रही। उचित देखभाल की कमी से हमेशा इस पर खतरा बना रहता है।
इस पुल की मियाद कई वर्ष पहले ही समाप्त हो गई थी। तभी से इस पुल पर भारी वाहनों का आवागमन तत्कालीन बसपा सरकार ने रोक दिया था। वर्ष 2015 में रेलवे और पीडब्ल्यूडी की आपसी सहमति से इसकी पैचिंग और बाइंडिंग की गई। समाजवादी पार्टी के सत्ता में आते ही इसपर एक बार फिर से भारी वाहन आने जाने लगे। हालांकि कुछ दिन बाद फिर से इस पुल पर भारी वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया गया। 2017 में सरकार बदली, भाजपा के सत्ता में आते ही पुल की रंग-रूप पर ध्यान दिया गया। जंग लगे मालवीय पुल के पार्ट्स की रंगाई पुताई की गई। लेकिन आंतरिक रूप से इसकी मजबूती पर ध्यान नहीं दिया गया। तब से सरकारें बदलीं, लेकिन उपेक्षा का शिकार मालवीय पुल आज भी विकास की आशा में अपने जगह खड़ा है।